Mirza Ghalib Shayari - मिर्जा ग़ालिब के दिलकश शेर

60+ Best Mirza Ghalib Shayari in Hindi 2022 - मिर्जा ग़ालिब के दिलकश शेर


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Mirza Ghalib Shayari

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा !
लड़ते हैं और हाथ में⚔️तलवार भी नहीं !!

“Is Sadagee pe kaun na mar jae ai khuda !
Ladate hain aur hath mein talavar bhi nahin !!”
 
Mirza Ghalib-01

मुहब्बत💓में उनकी अना का पास रखते हैं !
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!

“Muhabbat mein unakee ana ka paas rakhate hain !
Ham janakar aksar unhen naaraaz rakhate hain !!”
 
Mirza Ghalib-02
 
तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान,झूठ जाना !
कि ख़ुशी😁से मर न जाते अगर एतबार होता  !!

“Tere vaade par jiye ham to yah jaan, jhooth jana !
Ki khushi se mar na jate agar etabar hota !!”
 
Mirza Ghalib-03
 
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर !
आने का अहद कर गए आए जो ख्वाब  में !!
 
Mirza Ghalib-04
 
रगों में🏃दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल !
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है  !!"
 
Mirza Ghalib-05
 
इक शौक़ बड़ाई का अगर हद से गुज़र जाए !
फिर ‘मैं’ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता !!
 
Mirza Ghalib-06
 
दिल–ए–नादाँ तुझे हुआ क्या है !
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है !!
 
Mirza Ghalib-07
 
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको !
ये मेरी उम्र मोहब्बत💓के लिए थोड़ी है  !!
 
Mirza Ghalib-08
 
उस पे आती है मोहब्बत💓ऐसे !
झूठ पे जैसे यकीन आता है !!
 
Mirza Ghalib-09
 
गुज़रे हुए लम्हों को मैं इक बार तो जी लूँ !
कुछ ख्वाब तेरी याद💞दिलाने के लिए हैं  !!

Mirza Ghalib-10 
 
गुज़र रहा हूँ यहाँ से भी गुज़र जाउँगा !
मैं वक़्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !!"
 
Mirza Ghalib-10
 
एजाज़ तेरे इश्क़💞का ये नही तो और क्या है !
उड़ने का ख्वाब देख लिया इक टूटे हुए पर से !!
 
Mirza Ghalib-11
 
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया !
वर्ना हम भी आदमी थे काम के !!"
 
Mirza Ghalib-12
 
"उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ !
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है !!"
 
Mirza Ghalib-13
 
इश्क़💕पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' !
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
 
Mirza Ghalib-14
 
दिल💕से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई !
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई !!

Mirza Ghalib-15

तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो !
हज़र करो मिरे दिल से  कि उस में आग दबी है !!

Mirza Ghalib-16

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।
 
Mirza Ghalib-16

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।

Mirza Ghalib-17
 
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।।

Mirza Ghalib-18
 
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।

Mirza Ghalib-19
 
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।

Mirza Ghalib-20
 
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।

Mirza Ghalib-21
 
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब।
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।।

Mirza Ghalib-22
 
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।

Mirza Ghalib-23
 
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी।
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है।।

Mirza Ghalib-24
 
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है।
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।।

Mirza Ghalib-25
 
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
 दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़्याल अच्छा है।।

Mirza Ghalib-26
 
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को।
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।।

Mirza Ghalib-27
 
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना।
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।।

Mirza Ghalib Shayari-28
 
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं।
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।।

Mirza Ghalib-29
 
तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई।
मेरा नाला सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।।

Mirza Ghalib Poetry-30
 
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का।
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता।।

Mirza Ghalib-31
 
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।।

Mirza Ghalib-32
 
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं।।

Mirza Ghalib-33

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया!
वर्ना हम भी आदमी थे काम के!!”

Mirza Ghalib-34

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़!
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है!!”

Mirza Ghalib-35

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है! 
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है!!”

Mirza Ghalib Shayari-36

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'!
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे!!”

Mirza Ghalib-37

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना! 
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना!!”

Mirza Ghalib-38

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई! 
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई!!” 

Mirza Ghalib-39

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ! 
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ!!”

Mirza Ghalib-40

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक! 
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक!!”

Mirza Ghalib Shayari-41

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का!
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले!!”

Mirza Ghalib-42

कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में!
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते!!”

Mirza Ghalib-43

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले!
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले!!”

Mirza Ghalib-44

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए! 
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए!!”

Mirza Ghalib-45

हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब! 
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते!!”

Mirza Ghalib-46

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को!
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं!!”

Mirza Ghalib-47

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी!
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है!!”

Mirza Ghalib Sher-48

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल!
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है!!”

Mirza Ghalib-49

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है!
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता!!”

Mirza Ghalib-50

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना!
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता!!”

Mirza Ghalib Sher-51

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन!
 दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़्याल अच्छा है!!”

Mirza Ghalib-52

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को!
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता!!”

Mirza Ghalib-53

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना! 
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना!!”

Mirza Ghalib-54

यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं!
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो!!”

Mirza Ghalib-55

तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हाँ मगर चैन से बसर न हुई!

मेरा नाला सुना ज़माने ने,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई!!”

Mirza Ghalib-56

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का!
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!!”

Mirza Ghalib Shayari-57

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है!
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है!!”

Mirza Ghalib-58

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं!
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं!!”

Mirza Ghalib-59

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं!!”

Mirza Ghalib


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