Hindi Poem - घर की खिड़कियां जब खुली

Hindi Poem - घर की खिड़कियां जब खुली


घर की खिड़कियां जब खुली
चाँद सी एक कली सामने थी खड़ी
कब होगा मिलन ये सोचता मैं रहा
चाँद को गौर से
गौर से चाँद को देखता मैं रहा!

उसका चंदन सा बदन
झील से थे नयन
उसके नयनों के झील मे डूबता मैं रहा
चाँद को गौर से
गौर से चाँद को देखता मैं रहा!

बंधे दिल का बंधन
जाऊं उसके दिल में उतर
इस लिए खिड़कियां अपनी
रोज खोलता मैं रहा
चाँद को गौर से
गौर से चाँद को देखता मैं रहा!

होगा पूरा सपन
ख़्वाबों में होगा मिलन
यही सोचकर रात भर जागता मैं रहा
चाँद को गौर से
गौर से चाँद को देखता मैं रहा!

By Rajesh Kumar Verma

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